भारत विकास-एक ज़मीनी सच्चाई

 

कूड़ा – कूड़ा तो अब जैसे आम आदमी के ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। आप अपने गली मांहल्ले में सड़कों पर या फिर कूड़ेदान पर चारों तरफ कूड़ा दिख ही जाता है। यहाँ तक कि बच्चों के खेलने के पार्कों में भी कूड़ा जिस तरह बिखरा पाया जाता है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि कू़ड़ा अपनी ज़िन्दगी का अभिन्न अंग बन चुका हो। पिछले दिनों प्रणानमंत्री जी ने एक बहुत ही सुन्दर और जीवनोयोगी कार्यक्रम लाॅन्च किया – स्वच्छता अभियान। बाद में यही अभियान स्वच्छ भारत के नाम से भी बहुचर्चित रहा। सरकारी दफ्तरों मे तो चारों ओर दिवारों पर, नोटिस बोर्डों पर यहां तक कि अफसरों के कमरों में स्वच्छता अभ्यिान के पोस्टरों से सजे मिलते हैं। और ऐसा हम नहीं कह रहे हैं आपने भी स्वयं अपनी आंखों से देखा ही होगा। पिछली पुरानी सरकारों ने भी इसी से मिलते जुलते नाम ”स्वर्णिम भारत“ और ”स्वच्छ दिल्ली सुन्दर दिल्ली“ का इस्तेमाल कर जनता का मन तो खूब मोहा होगा परन्तु अंजाम – वही ढाक के तीन पात।
ये दिल्ली के एक अति विकसित क्षेत्र – लाजपत नगर फस्ट का एक दृष्य है जहां सड़कों पर और कूड़ेदान व उसके इर्द गिर्द पड़े भारी मात्रा में कूड़ा बिखरा पड़ा रहता है। हैरानी की बात तो ये है कि इस कूडेदान के सामने सरकारी सकूल है जिसमें सैंकड़ों बच्चे दिन भर पढ़ने आते हैं। और पूरे दिन इसी विद्यालय में रहकर अपनी पड़ाई करते हैे। मेडिकल साइन्स की मानें तो कूड़े से खतरनाक गैस का रिसाव होता है जो न केवल कैन्सर जैसी बीमारी को जन्म देने में न केवल सहायक होता है बल्कि आग में घी का काम करता है। विषेशज्ञों के अनुसार यदि कूड़े का समयबद्ध तरीके से निपटान न किया जाए तो यही कूड़ा घातक प्रदूशण बिखेर कर जीवन दायिनी सांस लेने वाली हवा यानि आॅक्सीजन को भी जहरीली कर देता है जिससे भारत के लोग घातक एवं जानलेवा बीमारियों के षिकार होते जा रहे हैं। मेडिकल साइन्स और प्रदूशण विषेशज्ञों का मानना है कि कूड़े से प्रदूशण को फैलने से रोकना ही सरकार की सर्वाेच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। और इसके लिए कूड़े का निपटान समय पर समुचित, सषक्त एवं सुदृढ़ व्यवस्था में किया जाना चाहिए। इस काम को अंजाम देने के लिए स्ज्ञु नीयत और एक जबर्दस्त इच्छाषक्ति का हो कठोर से कि कूड़े के कारण भारत के किसी नागरिक को कोई क्षति ना पहुंचे। क्यों नहीं सरकारें इस बात को सुनिष्चित करती हैं कि भारत में कोई भी व्यक्ति ना तो बीमार पड़े और न किसी की जान खतरे में हो चाहे वो आम हो या फिर खास? वैज्ञानिकों के अनुसार यदि लोगों को घातक एवं जानलेवा बीमारियों से बचाना है तो सबसे पहले कूड़े का निपटान सही समय पर और सही तरीके से किया जाना अत्यन्त आवष्यक है और लोगों को स्वस्थ जीवन देना सरकार का नैतिक दायित्व भी है। इस कारण कूड़े से निपटने के लिए सरकार को, चाहे वो केन्द्र की सरकार हो या फिर राज्यों की, उसे राजनीति छोड़कर भारत के नागरिकों को कूड़ा मुक्त भारत देने के लिए अपनी पूरी षक्ति झोंक देनी चाहिए।
दिल्ली सरकार की मानें तो षहर को साफ सुथरा रखने में केन्द्र सरकार के सहयोग की भारी आवष्यकता होती है। लेकिन दिल्ली सरकार को केन्द्र से कोई मदद नहीं मिलती है। वहीं केन्द्र सरकार की अपनी दलीलें हैं और वो कोई न कोई दलील देकर अपना पल्ला झाड़ तो लेती है।

मेरी राय में, कौन सही है कौन गलत, कौन ज़िम्मेदार है कौन नहीं इस बहस में पड़ना ही सही नहीं है। कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन भारत के नागरिकों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना और ऐसे हालात पैदा करना तो सरकारों की ही ज़िम्मेदारी है। और ये जानना भी नितान्त आवष्यक है कि इसके अभाव में और कूड़ा निपटान का कार्य समय से और पूरी तरह न होने का खामयाज़ा सिर्फ और सिर्फ भारत की जनता को ही भुगतना पड़ता है।
इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि टी. बी., कैन्सर, डेन्गु, मलेरिया, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसी जानलेवा बीमारियां के सर्वाधिक मामले सिर्फ और सिर्फ गंदगी के कारण होता है।
वचाव संभव है। कितनी अजीब बात है। सरकार पोस्टरों, बड़ी बड़ी होर्डिंगों, टी. वी. विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को अपने घरों में कूड़ा इकट्ठा न करने की हिदायत देती है, लोगों के घरों में पानी जमा न हो इसकी भी हिदायत देती है और यहाँ तक कि इन हिदायतों का उलंघन करने वालों पर जुर्माने का भी प्रावधान है। परन्तु क्या कूड़ेदान से कूड़ा का निपटान करना जनता का काम है? नहीं, ये सरकार की ज़िम्मेदारी है। और सरकार के कर्मचारी यदि इस कार्य को सही समय पर और सही तरीके से अंजाम नहीं देते हैं तो ना उनपर कोई कार्यवाही होती है और न ही कोई जुर्माना।
ऐसा क्यों? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इन्हीं कारणें से भ्रश्टाचर को बढ़ावा मिलता है? सरकार में कार्यरत कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही होती नहीं, सरकारी कर्मचारी पर कोई जुर्माना होता नहीं। इसलिए तो सरकारी कर्मचारी अपनी ज़िम्मेदारी के अनुसार अपने कार्यक्षेत्र में आने वाले कार्यों को अन्ज़ाम देने की बजाय वो लोगों के घरों में घूम घूम-कर ये पता लगाता है कि कहाँ पर पानी इक्ट्टा हो रहा है और कहाँ पर कूड़ा, ताकि वो उनपर जुर्माना कर सके।
इस प्रथा को बदलना है। हमारा साथ दें।

यदि आपके इलाके में कूड़ा दिखाई पड़े, यदि आपके इलाके में जल भराव दिखे तो फौरन हमें इत्तिला  दें। आपके साथ मिलकर हम आपके इलाके की नियमित सफाई सुनिष्चित करने का हर संभव प्रयास करेंगे।

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