जी बी पन्त अस्पताल आई सी यू की ज़मीनी सच्चाई

नई दिल्ली: दिल्ली में जी बी पन्त अस्पताल के आई सी यू से एक एैसी खबर सामने आई जो इस अस्पताल के प्रषासन और डाॅक्टरों केे काम पर कई सवाल खड़ा कर रही है।
रोगी मनोज (बदला हुआ नाम) के परिजनों के मुताबिक 31 नवंम्बर 2014 षुक्रवार की षाम छः बजे रोगी मनोज के पेट का एक मेजर आॅपरेषन किया जाता है। अगले दिन 1 नवंबर षनिवार को आॅपरेषन के बाद सुबह लगभग सात बजे रोगी को आई सी यू वार्ड में षिफ्ट करने का निर्णय लिया जाता है। वार्ड बाॅय बहाँ मौजूद रोगी की बहन से कहता है ले जाओ अपने पेषेन्ट को वार्ड में। स्टेचर खींचना बहन के बस का न था इस कारण वार्ड बाॅय से ही बार्ड में पहुँचाने को कहा। थोड़ी बहस भी हुई। रोगी के बहन ने पेषेन्ट को वार्ड में न पहुँचाने की षिकायत अस्पताल के वरिश्ठ अधिकारियों से करने की बात कही तो वार्ड बाॅय बेमन के आई सी यू से निकाल कर आई सी यू वाॅर्ड के बिस्तर नं. 14 पर छोड़ने गया। वार्ड में 14 नं बेड पर कोई अन्य रोगी लेटा हुआ था। वो बिस्तर छोड़ने को तैयार नहीं था। काफी मषक्कत के बाद भी जब वो बेड खाली नहीं किया तो अचानक वार्ड बाॅय बाहर से एक प्हील चेयर लायाए उसपर ओ टी से लाए पेषेन्अ मनोज को उतारकर बैठाया और स्टैचर ट्राॅली लेकर चला गया। यानि अब थी ज़िम्मेदारी मनोज और उसके परिवार की उसे बेड की व्यवस्था कर उसपर लेटाने की। हैरानी होती है सरकारी कर्मचारियों के गैरज़िम्मेदाराना रवैया पर। कैसे और किसके हवाले आई सी यू में लेटे हुए रोगी को बिस्तर से उतारकर व्हील चेयर पर बैठा देता है। परिजनों से यह कहकर चला गया कि बिस्तर खाली हो जाए तो उसपर लेटा देना।
इधर 14 नं बेड पहले से कोई दूसरा रोगी बिस्तर को जबरन घेरे बैठा था। उसने आई सी यू से आपरेषन के बाद आए मनोज के परिजनों से बोला कि तब तक बिस्तर खाली नहीं करेगा जबतक डाॅक्टर उसका आॅपरेषन नहीं कर देते…!
रोगी मनोज के परिजन जब बिस्तर नं. 14 पर किसी और रोगी को देख वापस आई सी यू में लौट आए और ड्यूटी पर मौजूद नर्स से पूछा तो नर्स ने बताया कि बिस्तर नं. 14 खाली नहीं था और खाली न होने की वजह का ज्ञान नहीं था। नर्स ने बताया कि आप जहां से आए हैं वहीं पर जाकर पता करिये।
नर्स के ऐसा कहने पर रोगी के परिजन वापस लौटकर आई सी यू में जाते हैं और वहां आई सी यू  वाॅर्ड का बिस्तर नं. 14 (बदला हुआ नं) पर किसी अन्य रोगी द्वारा कब्जा किए जाने के विशय में बताते हैं तो वहां डयूटी कर रही नर्स ने भी यही कहा कि उनके पास अभी उक्त बेड नं. 14 के खाली होने की कोई सूचना नहीं मिली है। लिहाज़ा परिजनों को वापस वार्ड में पता करने को कहा। बग तो रोगी के परिजन बुरी तरह परेषान। आई सी यू और वार्ड दोनों जगह से उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली।
सोचने वाली बात है कि एक रोगी जो अभी अभी महज़ 20 मिनट पहले ही आई सी यू से निकला हो पहले तो उसे बिस्तर सेे उठाकर व्हील चेयर पर बिठा दिया गसा। ऊपर से उसे व्हील चेयर पर इधर से उधर खुले में घुमाया जा रहा था। उल्लेखनीय है कि आॅपरेषन के तुरन्त बाद रोगी को आई सी यू में रखने की बजाय बाहर निकालकर घुमाना खतरे से खाली नहीं होता है। इसी कारण पेषेन्ट को आपरेषन के बाद आई सी यू में ना रखा जाए तो रोगी को इन्फेक्षन लगने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है। रोगी के परिजनों ने बताया कि इन सब बातों के बीच उनके रोगी को अधिक समय तक व्हील चेयर पर बैठाकर रखनेे से रोगी की हालत बिगड़ने लगी और काफी देर तक नाजुक बनी रही।  आखिर जब अस्पताल में कोई डाक्टर, वार्ड बाॅय या नर्स मदद को नहीं आया तब थक हारकर रोगी के परिजन स्वयं आई सी यू वार्ड के 14 नं बेड पर जाकर वहां बैठे रोगी को अपने रोगी की नाज़ुक हालत का हवाला देकर हटने के लिए प्रेरित किया और फिर कहीं जाकर रोगी मनोज जिसका आफपरेषन हुआ था उसे बेड पर लेटासा जा सका।
सुत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 14 नं बेड पर जिस रोगी को पाया गया उसके मुताबिक वो व्यक्ति उस बिस्तर पर अपने आॅपरेष होने का इंतजार कर रहा था जो स्वयं से अच्छी तरह चलने- फिरने और खाने-पीने की स्थिति में था।
इस घटना को पूरे 30 मिनट हो चुके और आॅपरेषन की हालत में व्हील चेयर पर बैठाया गया रोगी अपने बिस्तर तक नहीं पहुंचा था क्योंकि उसे बिस्तर तक छोड़ कर आने वाला कर्मचारी अभी तक खाली नही हो पाया था।
अब यहां सोचने और ध्यान देने वाली बात यह है कि ’आई सी यू’  से ’आई सी यू वाॅर्ड’ के बिस्तर नं. 14 तक जाने तक जिन समस्याओं का सामना रोगी और रोगी के परिजनों को करना पड़ा ये इस अस्पताल के प्रषासन पर कई सवाल खड़े करता है।
ये समस्यायें आखिर आई क्यों?
आई सी यू से बिना बेड का इन्तजाम क्यों रोगी को बाहर निकाला गया?
क्या बेड का इन्तज़ाम पहले करके नहीं रखना चाहिए था?
बेड खाली हुए बगैर आॅपरेषन कर देना कहाँ की बुद्धिमानी है?
आई सी यू से नाजुक हालत में निकालकर रोगी को व्हील चेयर पर बेड के लिए इंतजार कराना क्या सही है?
डयूटी कर रही नर्स को क्यों अपने ही वार्ड के प्रबन्धन की जानकारी नहीं होती है?
उस वक्त आई सी यू में क्यों कोई डाॅक्टर मौजूद नहीं थे?
सर्वविदित हैं कि आई सी यू अस्पताल का ऐसा क्षेत्र हैं जहां ऐसे रोगी रखे जाते हैं जो अपनी जिंगदी और मौत से लड़ रहे हैं। फिर इस क्षेत्र में इस तरह की लापरवाही आखिर क्यों?
रोगी को बेड छोडकर जाने के लिए कहने के बाद भी कैसे वो रोगी जबरन आई सी यूू वार्ड के बिस्रत पर बैठा रह सकता है?
ये सारे वो अनसुलझे सवाल हैं जिनके जवाब तलाषना अभी बाकी है। जवाब मिलने पर फिर बताएंगे आपको ऐसे चर्मराते और लचीले प्रबन्धन के पीछे का सच।
– अर्पणा सिंह पराशर
संवाददाता – दिल्ली ब्यूरो

 

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